मेवाड़ का गुहिल राजवंश - पार्ट 2
रत्न सिंह :
* राज्याभिषेक – 1302 ईस्वी
* रत्न सिंह के समय की प्रमुख घटना 1303 ईस्वी में अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तोड़ पर किया गया आक्रमण था|
* खिलजी के आक्रमण के प्रमुख कारण –
1. खिलजी की महत्वकांक्षा या साम्राज्यवादी निति
2. चित्तोड़ का सामरिक महत्व
3. रत्न सिंह की रूपवती रानी पद्मिनी को प्राप्त करना|
युद्ध की घटनाएँ :
अल्लाउद्दीन खिलजी के चित्तोड़ आक्रमण के समय उसके साथ फारसी इतिहासकार अमीर खुशरों था| जिसने अपनी पुस्तक ख़जायन-उल-फुतूह में लिखा है की 26 अगस्त 1303 को चित्तोड़ का किला जीत लिया गया था| इसी समय अमीर खुशरों ने कहा था की हिन्दुओं का स्वर्ग सांतवे आसमान से भी ऊपर है|
खिलजी ने चित्तोड़ का किला जीतकर अपने पुत्र खिज्र खां को सौंप दिया तथा चित्तोड़ का नाम बदल कर खिज्राबाद कर दिया| खिलजी ने खिज्र खां के पश्चात अकत खां को चित्तोड़ का शासन सौंपा|
पद्मिनी की कथा :
पद्मिनी की कथा का वर्णन मल्लिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित ग्रन्थ “पद्मावत” में मिलता हैजो शेरशाह सूरी के काल में लिखा गया था|
नोट : डॉ. दशरथ शर्मा राजस्थान के एकमात्र ऐसे इतिहासकार हैं जिन्होंने पद्मिनी की कथा को मान्यता दी है|
पद्मिनी :
जन्म स्थान – सिंहल द्वीप (श्रीलंका)
पिता का नाम – गंधर्व सैन
माता का नाम – चम्पावती
पद्मिनी के तोते का नाम – हिरामन (इस तोते को राजा रत्न सिंह ने चित्तोड़ में 1 लाख रुपयों में ख़रीदा था|)
भाई का नाम – बादल
चाचा का नाम – गोरा
* अल्लाउद्दीन को खिलजी के सौन्दर्य के बारे में रत्न सिंह के ही सभासद राघव चेतन ने बताया था|
* पद्मावत नामक ग्रन्थ में पद्मिनी को बुद्धि, रत्न सिंह को हृदय, चित्तोड़ को शरीर व अल्लाउद्दीन खिलजी को माया बताया गया है|
* युद्ध के दौरान पद्मावती ने 16000 राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर किया तथा पुरुषों ने रत्न सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण किया| यह मेवाड़ के इतिहास का प्रथम शाका था|
राणा हम्मीर :
* 1326 ईस्वी में सिंसोदिया शाखा के अरी सिंह के पुत्र हम्मीर ने चित्तोड़ का दुर्ग वहां के शासक जेता सिंह को पराजित करके हासिल किया और चित्तोड़ में गुहिलों के ही वंशज सिंसोदिया वंश की स्थापना की| इसके बाद से ही मेवाड़ के राणा, महाराणा कहलाने लगे|
* हम्मीर के समय से लेकर उदय सिंह के समय तक मेवाड़ का शासन चित्तोड़ से ही संचालित होता रहा|
* कुम्भा द्वारा रचित कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति, रसिक प्रिया में हमीर को विषम घाटी पंचानन कहा है|
* हम्मीर की मृत्यु – 1364 ईस्वी
महाराणा क्षेत्रसिंह :
* शासनकाल – 1364 से 1382 तक|
* महाराणा क्षेत्रसिंह इतिहास में महाराणा खेता के नाम से भी प्रसिद्ध है, जिसने मालवा के दिलावर खां को पराजित कर मेवाड़ व मारवाड़ की शत्रुता का आरम्भ किया|
महाराणा लक्ष्य सिंह/ महाराणा लाखा :
* शासनकाल – 1382 से 1421 तक|
* जावर की खान – लाखा के समय उदयपुर में जावर की खान की खुदाई हुयी, जिसमे सोना-चांदी, सीसा-जस्ता, कैडियम आदि खनिज निकाले जाने लगे|
* पिछोला झील – महाराणा लाखा के समय ही पिच्छू नामक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया|
* हंसाबाई – मारवाड़ के रणमल राठौड़ ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह वृद्धावस्था में लाखा के साथ इस शर्त पर किया की हंसाबाई से जो पुत्र उत्पन्न होगा वही लाखा का उत्तराधिकारी होगा|
जिसके पश्चात लाखा के बड़े पुत्र राव चुडा ने प्रतिज्ञा की मेरा और मेरे वंश का मेवाड़ की राजगद्दी पर कोई हक नहीं रहेगा| ऐसी प्रतिज्ञा करने के कारण ही राव चुडा को राजस्थान का भीष्म पितामह कहा जाता है| यही कारन है की लाखा के बाद मोकल मेवाड़ का शासक बना ना की राव चुडा|
महाराणा मोकल :
* राज्याभिषेक. – 1421 ईस्वी
* मोकल ने बप्पा रावल द्वारा निर्मित एकलिंगजी के मन्दिर के चारों तरफ परकोटे का निर्माण करवाया था|
* मोकल के दरबार के प्रमुख शिल्पिकार – मन्ना, फन्ना और विशल
* प्रमुख विद्वान् – योगेश्वर और भट्विष्णु
* मोकल की मृत्यु – 1433 में महाराणा खेता की उपपत्नी के पुत्र चाचा व मेरा द्वारा मोकल की हत्या कर दी गयी जिसमे महपा पंवार का भी योगदान रहा|
महाराणा कुम्भा :
* राज्याभिषेक – 1433
* कुम्भा के पिता – महाराणा मोकल
* कुम्भा की माता – सौभाग्य देवी
महाराणा कुम्भा की प्रमुख उपाधियाँ –
* अभिनवभरताचार्य –संगीत प्रेमी होने के कारण महाराणा कुम्भा को यह उपाधि दी गयी| कुम्भा वीणा नामक वाद्य यन्त्र को बजाने में निपुण था|
* महाराजाधिराज – गीत गोविन्द की टीका व कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में कुम्भा के विद्वानों का संरक्षणदाता होने के कारन महाराजाधिराज कहा गया|
* परमगुरु – अपने समय का सर्वोच्च शासक|
* छापगुरु – छापामार युद्ध पद्दति में निपुण होने के कारण
* नरपति अश्वपति – विशाल सेना का स्वामी होने के कारण
* हालगुरु – पहाड़ी दुर्गो का स्वामी होने के कारण|
* हिन्दू सुरताण – महाराणा कुम्भा को हिन्दू सुरतान की उपाधि भी दी गयी थी|
(महाराणा कुम्भा को राजस्थानी सथाप्त्य कला का जनक जबकि शाहजहाँ को भारतीय स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है|)
* महाराणा कुम्भा की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ और उनका समाधान –
कुम्भा ने रणमल की सहायता से चाचा व मेरा की हत्या कर अपने पिता की हत्या का बदला लिया| हालाँकि जब महपा पंवार को इस बारे में पता चला तो उसने मालवा सुल्तान महमूद खिलजी के यहाँ शरण ले ली|
* सारंगपुर का युद्ध (1437) – सारंगपुर का युद्ध महाराणा कुम्भा व मालवा सुल्तान महमूद खिलजी के मध्य हुआ|
* युद्ध के कारण – महपा पंवार को मालवा सुल्तान द्वारा शरण देना|
* युद्ध का परिणाम – 1. कुम्भा की विजय 2. विजयस्तम्भ का निर्माण|
विजयस्तम्भ (चित्तोडगढ) :
* निर्माण अवधि – 1440 से 1448 तक
* कुल खर्च – 90 लाख रूपये
* कुल मंजिला – 9 मंजिला
* विजयस्तम्भ का प्रशस्तिकार – जेता, नामा, पुमा (पूंजा), भोमा
* कीर्तिस्तम्भ का प्रशस्तिकार –अत्री कवी महेश
* विजयस्तम्भ को भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश डॉ. गर्टज ने कहा, जबकि उपेन्द्रनाथ ने इसे भारतीय मूर्तियों का अजायबघर और विष्णु ध्वज कहा है|
* यह राजस्थान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त 1949 को 1 रूपये का डाक टिकेट जारी किया गया|
* राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिन्ह भी विजयस्तम्भ ही है|
* विजयस्तम्भ की तीसरी मंजिल पर अरबी भाषा में 7 बार अल्लाह शब्द लिखा हुआ है|
* सन् 1857 की क्रांति के समय विजयस्तम्भ की नौंवी मंजिल टूट गयी थी जिसका पुनर्निर्माण मेवाड़ के शासक स्वरुप सिंह ने करवाया|
कुम्भा और गुजरात :
कुम्भा के राज्याभिषेक के समय गुजरात का शासक अहमद शाह था| जिसकी मृत्यु के पश्चात् मोहम्मद शाह गुजरात का शासक बना, जिसकी 1451 में मृत्यु हो गयी| उसके बाद कुतुबुद्दीन शासक बना, जिसके साथ कुम्भा का संघर्ष हुआ था|
नागौर का उत्तराधिकारी संघर्ष और कुम्भा :
नागौर के शासक मुजाहिद खां की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र श्मश खां और और मुजाहिद खां के भाई फिरोज खां के मध्य संघर्ष हुआ| इस संघर्ष में कुम्भा ने श्मश खां को नागौर का शासक इस शर्त पर बनाया की वह नागौर के दुर्ग की मरम्मत नहीं करेगा लेकिन श्मश खां ने इस शर्त का उल्लंघन किया| जिसके कारण कुम्भा ने नागौर पर आक्रमण किया| इस समय श्मश खां की मदद गुजरात शासक कुतुबुद्दीन ने की लेकिन पराजित हुआ|
चंपानेर की संधि :
पराजित होने के बाद कुत्तुबुद्दीन ने ताज खां नामक दूत मालवा सुल्तान महमूद खिलजी के पास भेजा| जिसकी मध्यस्तथा से सन् 1456 में गुजरात व मालवा के मध्य चंपानेर की संधि हुयी| इस संधि की शर्तानुसार दोनों एक साथ मेवाड़ पर आक्रमण करेंगे| सन् 1458 में दोनों ने एक साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुए|
नोट : इस समय कुम्भा ने भीलवाडा के पास बदनौर में मालवा सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित कर उसे 6 महीने तक चित्तोड़ के दुर्ग में कैद कर के रखा तथा इसी विजय की स्मृति में कुम्भा ने खुशालमाता का मन्दिर बनवाया|
कुम्भा कि सांस्कृतिक उपलब्धियां:
कवी राजा श्यामलदास द्वारा रचित वीर विनोद नामक ग्रन्थ के अनुसार कुम्भा ने राजस्थान के 84 दुर्गों में से 32 का निर्माण करवाया था, जिसके कारण कुम्भा को "राजस्थान कि स्थापत्य कला का जनक" कहा जाता है|
कुम्भा द्वारा निर्मित प्रमुख दुर्ग :
१. कुम्भलगढ़ - राजसमन्द जिले में
2. कटारगढ़ - कुम्भलगढ़ के अंदर स्तिथ
3. बैराठ दुर्ग - बदनौर, भीलवाडा
4. बसंतगढ़ दुर्ग - सिरोही
5. अचलगढ़ - माउंट आबू, सिरोही
6. भोमट दुर्ग - बाड़मेर
* कुम्भलगढ़ प्रशस्ति - इस प्रशस्ति कि रचना 1460 में अत्री कवी महेश ने कि थी|
* कुम्भा व विद्वान् -
१. टीला भट्ट
2. भवन सुंदर
3. वाणीक्ये
4. जयचंद्र सूरी
5. सोमसुन्दर
6. मुनी सुन्दर
७. सुन्दर गणि
8. सुन्दर मणि
९. सोमदेव
* सारंगव्यास - कुम्भा का संगीत गुरु
* कानाव्यास - कनाव्यास ने वेतन लेकर एकलिंग महामात्य नामक नाट्य कि रचना की, जिसकी तुलना पुराणों से कि गयी|
* मंडन - कुम्भा के दरबार का प्रमुख मूर्तिकार
* नाथा - यह मंडन का भाई था जो वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्द था|
कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थ -
१. संगीतराज - यह ग्रन्थ 9 भागों में विभाजित है, जो 5 कोशो में वर्णित है|
i. पाठरत्न कोष
ii. गीत रत्न
iii. रसरत्न कोष
iv. नृत्य रत्न कोष
v. वाद्य रत्न कोष
कुम्भा कि मृत्यु - 1468 में कटार दुर्ग में पुत्र उदय द्वारा मार दिया गया जिसके कारण इसे मेवाड़ के इतिहास का पित्रहीन माना जाता है|
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