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Sunday, 17 December 2017

मेवाड़ का गुहिल राजवंश - पार्ट 1

मेवाड़ का गुहिल राजवंश - पार्ट 1 

पिछली पोस्ट मेवाड़ का गुहिल राजवंश और उसकी उत्पति के सिद्धांत! में आपने गुहिल वंश की उत्पति के सिद्धांत पढ़े थे| इस पोस्ट में हम मेवाड़ के गुहिल राजवंश के शासकों के बारे में पढ़ेंगे| हालाँकि इनके बारे में विस्तार से पढने व इतना सब कुछ याद करने के ज्यादा वक्त चाहिए जबकि राजस्थान पुलिस की एग्जाम में कुछ ही दिन शेष है, ऐसे में हम आपको इस पोस्ट में गुहिल राजवंश के शासकों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने जा रहे हैं| लेकिन इसका मतलब यह नहीं की हम आपको आधी-अधूरी जानकारी देने वाले हैं, बल्कि हम आपके साथ इन शासको की वो सभी जानकारियां शेयर करेंगे, जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है| Work Smart Not Hard. ;)



बप्पा रावल :


* बप्पा रावल गुहिल वंश का प्रथम प्रतापी शासक था जिसका वास्तविक नाम कालभोज था|

* बप्पा रावल हरित ऋषि का शिष्य था जिसके आशीर्वाद से बप्पा को मेवाड़ की राजगद्दी प्राप्त हुयी| बाद में बप्पा रावल ने पाशुपत संप्रदाय को समर्पित उदयपुर के कैलाशपुरी गाँव में एकलिंगजी के मंदिर का निर्माण करवाया| बप्पा ने एकलिंगजी को मेवाड़ का स्वामी या शासक माना तथा स्वयं को मेवाड का दीवान बताया|

* बप्पा रावल के समय मेवाड की राजधानी नागदा थी|

* कविराजा शामलदास द्वारा रचित वीर विनोद ग्रन्थ के अनुसार चित्तोड़ का दुर्ग बप्पा ने मौर्य सम्राट मानमौरी को पराजित कर के जीता था|

* रावल शब्द बप्पा की उपाधि का नाम है, जिसका अर्थ है वीरता या बहादुरी|

* बप्पा ने 115 ग्रेन सोने का सिक्का चलाया| जिस पर गाय, बछड़े और शिवलिंग अंकित थे|

* इतिहासकार सी. वी. वैद ने बप्पा को मेवाड़ का चार्ल्स मर्टल कहा है|

* बप्पा की मृत्यु नागदा गाँव में हुयी|

अल्लट :


* बप्पा की मृत्यु के बाद अल्लट 10वीं शताब्दी में मेवाड़ का शासक बना| अल्लट के काल में ही सर्वप्रथम मेवाड़ में नौकरशाही का गठन हुआ|


* अल्लट ने हूण राजकुमारी हरिया देवी के साथ विवाह किया तथा ख्यातों में अल्लट को आलूरावल कहा गया|

* अल्लट के समय मेवाड़ की राजधानी आहड़ थी|

अल्लट के बाद के शासक :

कर्ण सिंह – कर्ण सिंह के दो पुत्र थे, क्षेत्र सिंह और राहप|

क्षेत्र सिंह क्षेत्र सिंह ने रावल शाखा की स्थापना की थी|

राहप सिंह – राहप ने राणा वंश की स्थापना सिसोदिया ग्राम में की थी, इसलिए इसे सिंसोदिया वंश के नाम से भी जाना जाता है| 

क्षेत्र सिंह के भी दो पुत्र थे – सामंत सिंह और कुमार सिंह|

सामंत सिंह – सामंत सिंह को नाडोल के राजा कीर्तिपाल ने हराया थी, जिसके बाद सामंत सिंह ने वागड़ में शरण ली और वहां गुहिल वंश की स्थापना की|

कुमार सिंह – कुमार सिंह ने कीर्तिपाल के साथ युद्ध करके  उसे हरा दिया|

जैत्रसिंह :


* कुमार सिंह के वंशज जैत्रसिंह के समय दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था|

* जयसिंह सूरी द्वारा रचित ग्रन्थ हम्मीर मर्द मर्दन के अनुसार जैत्रसिंह ने इल्तुमिश को पराजित किया परन्तु नागदा को भरी हानि पंहुचने के कारण चित्तोड़ को राजधानी बनाया गया|

अब यहाँ हम्मीर मर्द मर्दन ग्रन्थ का उल्लेख हुआ है तो हम आगे बढ़ने से पहले इन ग्रंथो और इनके रचियता के बारे में थोड़ी सी बात कर लेते हैं –

ग्रन्थ और उनके लेखकों के नाम -

1. हम्मीर मर्द मर्दन – जयसिंह सूरी 

2. हम्मीर हठ – चंद्रशेखर

3. हम्मीर रासो – जोधराज 

4. हम्मीर महाकव्य – नयनचन्द्र सूरी 

5. हम्मीर बंधन – अमृत कैलाश 

6. हम्मीर रायन – व्यास भांड 

तेज़सिंह :


* तेजसिंह के शासन काल में मेवाड़ शेली का प्रथम चित्रित ग्रन्थ रचा गया था जिसका नाम “श्रावक प्रतिकर्मण चुनी सुणी” था|


* तेजसिंह की रानी – तेजसिंह की रानी जैत्तल देवी ने चित्तोड़ स्तिथ “श्याम पार्श्वनाथ” मन्दिर का निर्माण करवाया|

तेजसिंह के बाद के शासक – 

समर सिंह – समर सिंह के दो पुत्र थे, कुम्भकर्ण और रत्न सिंह|

कुम्भकर्ण – कुम्भकर्ण नेपाल चला गया और उसने वहीँ गुहिल वंश की नींव राखी| अब हम आगे के आर्टिकल्स में यानी पार्ट 2 में  रत्न सिंह के बारे में पढेंगे –

क्रमशः.....

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